उन लबों ने न की मसीहाई
हम ने सौ सौ तरह से मर देखा
Gulzar
Wasi Shah
Rahat Indori
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Javed Akhtar
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(3962) Peoples Rate This
नामा-ए-दर्द को मिरे ले कर
आँखें भी हाए नज़अ में अपनी बदल गईं
कुंज-कावी जो की सीने में ग़म-ए-हिज्राँ ने
तोहमत-ए-चंद अपने ज़िम्मे धर चले
शम्अ के मानिंद हम इस बज़्म में
या-रब ये क्या तिलिस्म है इदराक-ओ-फ़हम याँ
अज़िय्यत मुसीबत मलामत बलाएँ
समझना फ़हम गर कुछ है तबीई से इलाही को
'दर्द' के मिलने से ऐ यार बुरा क्यूँ माना
खुल नहीं सकती हैं अब आँखें मेरी
हम ये कहते थे कि अहमक़ हो जो दिल को देवे
अर्ज़-ओ-समा कहाँ तिरी वुसअत को पा सके