तोहमत-ए-चंद अपने ज़िम्मे धर चले
जिस लिए आए थे हम कर चले
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या-रब ये क्या तिलिस्म है इदराक-ओ-फ़हम याँ
वाए नादानी कि वक़्त-ए-मर्ग ये साबित हुआ
हमें तो बाग़ तुझ बिन ख़ाना-ए-मातम नज़र आया
हर-चंद तुझे सब्र नहीं दर्द व-लेकिन
यक-ब-यक नाम ले उठा मेरा
मैं जाता हूँ दिल को तिरे पास छोड़े
रब्त है नाज़-ए-बुताँ को तो मिरी जान के साथ
शम्अ के मानिंद हम इस बज़्म में
काश उस के रू-ब-रू न करें मुझ को हश्र में
जग में आ कर इधर उधर देखा
अगर यूँ ही ये दिल सताता रहेगा
तमन्ना तिरी है अगर है तमन्ना