तमन्ना तिरी है अगर है तमन्ना
तिरी आरज़ू है अगर आरज़ू है
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कमर ख़मीदा नहीं बे-सबब ज़ईफ़ी में
अर्ज़-ओ-समा कहाँ तिरी वुसअत को पा सके
हर-चंद तुझे सब्र नहीं दर्द व-लेकिन
मदरसा या दैर था या काबा या बुत-ख़ाना था
बावजूदे कि पर-ओ-बाल न थे आदम के
चमन में सुब्ह ये कहती थी हो कर चश्म-ए-तर शबनम
तुझी को जो याँ जल्वा-फ़रमा न देखा
ग़ाफ़िल ख़ुदा की याद पे मत भूल ज़ीनहार
अगर यूँ ही ये दिल सताता रहेगा
दिल मिरा फिर दुखा दिया किन ने
अर्ज़-ओ-समा कहाँ तिरी वुसअ'त को पा सके
मैं जाता हूँ दिल को तिरे पास छोड़े