ग़ाफ़िल ख़ुदा की याद पे मत भूल ज़ीनहार
अपने तईं भुला दे अगर तू भुला सके
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खुल नहीं सकती हैं अब आँखें मेरी
हर-चंद तुझे सब्र नहीं दर्द व-लेकिन
अज़िय्यत मुसीबत मलामत बलाएँ
मुझ को तुझ से जो कुछ मोहब्बत है
ज़ालिम जफ़ा जो चाहे सो कर मुझ पे तू वले
'दर्द' के मिलने से ऐ यार बुरा क्यूँ माना
रात मज्लिस में तिरे हुस्न के शोले के हुज़ूर
तुझी को जो याँ जल्वा-फ़रमा न देखा
नहीं शिकवा मुझे कुछ बेवफ़ाई का तिरी हरगिज़
दिल भी तेरे ही ढंग सीखा है
तोहमत-ए-चंद अपने ज़िम्मे धर चले
दुश्मनी ने सुना न होवेगा