गली से तिरी दिल को ले तो चला हूँ
मैं पहुँचूँगा जब तक ये आता रहेगा
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वहदत में तेरी हर्फ़ दुई का न आ सके
शम्अ के मानिंद हम इस बज़्म में
कहते न थे हम 'दर्द' मियाँ छोड़ो ये बातें
तोहमत-ए-चंद अपने ज़िम्मे धर चले
दिल मिरा फिर दुखा दिया किन ने
कमर ख़मीदा नहीं बे-सबब ज़ईफ़ी में
मुझ को तुझ से जो कुछ मोहब्बत है
साक़िया! याँ लग रहा है चल-चलाव
दिल भी ऐ 'दर्द' क़तरा-ए-ख़ूँ था
दर्द तू जो करे है जी का ज़ियाँ
नहीं शिकवा मुझे कुछ बेवफ़ाई का तिरी हरगिज़
काश उस के रू-ब-रू न करें मुझ को हश्र में