एक ईमान है बिसात अपनी
न इबादत न कुछ रियाज़त है
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ज़ालिम जफ़ा जो चाहे सो कर मुझ पे तू वले
कमर ख़मीदा नहीं बे-सबब ज़ईफ़ी में
ज़िंदगी है या कोई तूफ़ान है!
वहदत में तेरी हर्फ़ दुई का न आ सके
जग में आ कर इधर उधर देखा
वाए नादानी कि वक़्त-ए-मर्ग ये साबित हुआ
यक-ब-यक नाम ले उठा मेरा
तेरी गली में मैं न चलूँ और सबा चले
बावजूदे कि पर-ओ-बाल न थे आदम के
नामा-ए-दर्द को मिरे ले कर
खुल नहीं सकती हैं अब आँखें मेरी