खुल नहीं सकती हैं अब आँखें मेरी
जी में ये किस का तसव्वुर आ गया
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हम तुझ से किस हवस की फ़लक जुस्तुजू करें
सल्तनत पर नहीं है कुछ मौक़ूफ़
कमर ख़मीदा नहीं बे-सबब ज़ईफ़ी में
अगर यूँ ही ये दिल सताता रहेगा
साक़ी मिरे भी दिल की तरफ़ टुक निगाह कर
मिरा जी है जब तक तिरी जुस्तुजू है
नामा-ए-दर्द को मिरे ले कर
दर्द-ए-दिल के वास्ते पैदा किया इंसान को
आँखें भी हाए नज़अ में अपनी बदल गईं
रब्त है नाज़-ए-बुताँ को तो मिरी जान के साथ
समझना फ़हम गर कुछ है तबीई से इलाही को
वहदत में तेरी हर्फ़ दुई का न आ सके