खुल नहीं सकती हैं अब आँखें मिरी
जी में ये किस का तसव्वुर आ गया
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तोहमत-ए-चंद अपने ज़िम्मे धर चले
हो गया मेहमाँ-सरा-ए-कसरत-ए-मौहूम आह
है ग़लत गर गुमान में कुछ है
खुल नहीं सकती हैं अब आँखें मेरी
बावजूदे कि पर-ओ-बाल न थे आदम के
सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ
दर्द तू जो करे है जी का ज़ियाँ
यक-ब-यक नाम ले उठा मेरा
हम भी जरस की तरह तो इस क़ाफ़िले के साथ
क़त्ल-ए-आशिक़ किसी माशूक़ से कुछ दूर न था
गली से तिरी दिल को ले तो चला हूँ
दर्द-ए-दिल के वास्ते पैदा किया इंसान को