मैं जाता हूँ दिल को तिरे पास छोड़े
मिरी याद तुझ को दिलाता रहेगा
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नामा-ए-दर्द को मिरे ले कर
ज़िक्र मेरा ही वो करता था सरीहन लेकिन
दिल भी ऐ 'दर्द' क़तरा-ए-ख़ूँ था
वाए नादानी कि वक़्त-ए-मर्ग ये साबित हुआ
अगर यूँ ही ये दिल सताता रहेगा
न रह जावे कहीं तू ज़ाहिदा महरूम रहमत से
अर्ज़-ओ-समा कहाँ तिरी वुसअ'त को पा सके
सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ
ग़ाफ़िल ख़ुदा की याद पे मत भूल ज़ीनहार
रौंदे है नक़्श-ए-पा की तरह ख़ल्क़ याँ मुझे
क़ासिद नहीं ये काम तिरा अपनी राह ले
समझना फ़हम गर कुछ है तबीई से इलाही को