क़ासिद नहीं ये काम तिरा अपनी राह ले
उस का पयाम दिल के सिवा कौन ला सके
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रौंदे है नक़्श-ए-पा की तरह ख़ल्क़ याँ मुझे
सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ
साक़िया! याँ लग रहा है चल-चलाव
कमर ख़मीदा नहीं बे-सबब ज़ईफ़ी में
मदरसा या दैर था या काबा या बुत-ख़ाना था
हमें तो बाग़ तुझ बिन ख़ाना-ए-मातम नज़र आया
काश उस के रू-ब-रू न करें मुझ को हश्र में
ज़िंदगी है या कोई तूफ़ान है!
साक़ी मिरे भी दिल की तरफ़ टुक निगाह कर
क़त्ल से मेरे वो जो बाज़ रहा
हम तुझ से किस हवस की फ़लक जुस्तुजू करें