ज़िंदगी है या कोई तूफ़ान है!
हम तो इस जीने के हाथों मर चले
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अगर यूँ ही ये दिल सताता रहेगा
सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ
दिल भी ऐ 'दर्द' क़तरा-ए-ख़ूँ था
नहीं शिकवा मुझे कुछ बेवफ़ाई का तिरी हरगिज़
मदरसा या दैर था या काबा या बुत-ख़ाना था
गली से तिरी दिल को ले तो चला हूँ
साक़ी मिरे भी दिल की तरफ़ टुक निगाह कर
क़त्ल से मेरे वो जो बाज़ रहा
दर्द तू जो करे है जी का ज़ियाँ
शम्अ के मानिंद हम इस बज़्म में
बाग़-ए-जहाँ के गुल हैं या ख़ार हैं तो हम हैं
समझना फ़हम गर कुछ है तबीई से इलाही को