हाल मुझ ग़म-ज़दा का जिस जिस ने
जब सुना होगा रो दिया होगा
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बावजूदे कि पर-ओ-बाल न थे आदम के
तर-दामनी पे शैख़ हमारी न जाइयो
इश्क़ हर-चंद मिरी जान सदा खाता है
ज़िंदगी है या कोई तूफ़ान है!
क़त्ल-ए-आशिक़ किसी माशूक़ से कुछ दूर न था
अगर यूँ ही ये दिल सताता रहेगा
हर-चंद तुझे सब्र नहीं दर्द व-लेकिन
दर्द तू जो करे है जी का ज़ियाँ
कमर ख़मीदा नहीं बे-सबब ज़ईफ़ी में
बाग़-ए-जहाँ के गुल हैं या ख़ार हैं तो हम हैं
जग में आ कर इधर उधर देखा
जग में कोई न टुक हँसा होगा