ख़्वाजा मीर 'दर्द' कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ख़्वाजा मीर 'दर्द' (page 2)
नाम | ख़्वाजा मीर 'दर्द' |
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अंग्रेज़ी नाम | Khwaja Meer Dard |
जन्म की तारीख | 1721 |
मौत की तिथि | 1785 |
जन्म स्थान | Delhi |
न रह जावे कहीं तू ज़ाहिदा महरूम रहमत से
मुझे ये डर है दिल-ए-ज़िंदा तू न मर जाए
मत जा तर-ओ-ताज़गी पे उस की
मैं जाता हूँ दिल को तिरे पास छोड़े
खुल नहीं सकती हैं अब आँखें मेरी
खुल नहीं सकती हैं अब आँखें मिरी
काश उस के रू-ब-रू न करें मुझ को हश्र में
कमर ख़मीदा नहीं बे-सबब ज़ईफ़ी में
कहते न थे हम 'दर्द' मियाँ छोड़ो ये बातें
कभू रोना कभू हँसना कभू हैरान हो जाना
जी की जी ही में रही बात न होने पाई
जग में आ कर इधर उधर देखा
जान से हो गए बदन ख़ाली
हम भी जरस की तरह तो इस क़ाफ़िले के साथ
हो गया मेहमाँ-सरा-ए-कसरत-ए-मौहूम आह
हर-चंद तुझे सब्र नहीं दर्द व-लेकिन
हमें तो बाग़ तुझ बिन ख़ाना-ए-मातम नज़र आया
है ग़लत गर गुमान में कुछ है
हाल मुझ ग़म-ज़दा का जिस जिस ने
ग़ाफ़िल ख़ुदा की याद पे मत भूल ज़ीनहार
गली से तिरी दिल को ले तो चला हूँ
एक ईमान है बिसात अपनी
दुश्मनी ने सुना न होवेगा
दिल भी तेरे ही ढंग सीखा है
दिल भी ऐ 'दर्द' क़तरा-ए-ख़ूँ था
दर्द-ए-दिल के वास्ते पैदा किया इंसान को
दर्द तू जो करे है जी का ज़ियाँ
'दर्द' कुछ मालूम है ये लोग सब
'दर्द' के मिलने से ऐ यार बुरा क्यूँ माना
बावजूदे कि पर-ओ-बाल न थे आदम के