मुझे ये डर है दिल-ए-ज़िंदा तू न मर जाए
कि ज़िंदगानी इबारत है तेरे जीने से
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तेरी गली में मैं न चलूँ और सबा चले
हम ये कहते थे कि अहमक़ हो जो दिल को देवे
दिल भी तेरे ही ढंग सीखा है
तोहमत-ए-चंद अपने ज़िम्मे धर चले
खुल नहीं सकती हैं अब आँखें मिरी
बावजूदे कि पर-ओ-बाल न थे आदम के
चमन में सुब्ह ये कहती थी हो कर चश्म-ए-तर शबनम
'दर्द' कुछ मालूम है ये लोग सब
मैं जाता हूँ दिल को तिरे पास छोड़े
नहीं शिकवा मुझे कुछ बेवफ़ाई का तिरी हरगिज़
ने गुल को है सबात न हम को है ए'तिबार
हर-चंद तुझे सब्र नहीं दर्द व-लेकिन