Friendship Poetry of Khwaja Meer Dard
नाम | ख़्वाजा मीर 'दर्द' |
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अंग्रेज़ी नाम | Khwaja Meer Dard |
जन्म की तारीख | 1721 |
मौत की तिथि | 1785 |
जन्म स्थान | Delhi |
कविताएं
Ghazal 21
Couplets 62
Qita 4
Love 23
Sad 23
Heart Broken 24
Bewafa 4
Hope 10
Friendship 13
Islamic 6
ख्वाब 9
Sharab 3
क़त्ल-ए-आशिक़ किसी माशूक़ से कुछ दूर न था
दुश्मनी ने सुना न होवेगा
'दर्द' के मिलने से ऐ यार बुरा क्यूँ माना
बाग़-ए-जहाँ के गुल हैं या ख़ार हैं तो हम हैं
आँखें भी हाए नज़अ में अपनी बदल गईं
तुझी को जो याँ जल्वा-फ़रमा न देखा
तोहमत-ए-चंद अपने ज़िम्मे धर चले
क़त्ल-ए-आशिक़ किसी माशूक़ से कुछ दूर न था
मिरा जी है जब तक तिरी जुस्तुजू है
मदरसा या दैर था या काबा या बुत-ख़ाना था
मदरसा या दैर था या काबा या बुत-ख़ाना था
इश्क़ हर-चंद मिरी जान सदा खाता है
बाग़-ए-जहाँ के गुल हैं या ख़ार हैं तो हम हैं