कभू रोना कभू हँसना कभू हैरान हो जाना
मोहब्बत क्या भले-चंगे को दीवाना बनाती है
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ज़िक्र मेरा ही वो करता था सरीहन लेकिन
क़ासिद नहीं ये काम तिरा अपनी राह ले
देख मुझे तबीब आज पूछा जो हालत-ए-मिज़ाज
खुल नहीं सकती हैं अब आँखें मिरी
मिलाऊँ किस की आँखों से मैं अपनी चश्म-ए-हैराँ को
अर्ज़-ओ-समा कहाँ तिरी वुसअ'त को पा सके
खुल नहीं सकती हैं अब आँखें मेरी
जी की जी ही में रही बात न होने पाई
आगे ही बिन कहे तू कहे है नहीं नहीं
बाग़-ए-जहाँ के गुल हैं या ख़ार हैं तो हम हैं
या-रब ये क्या तिलिस्म है इदराक-ओ-फ़हम याँ
रौंदे है नक़्श-ए-पा की तरह ख़ल्क़ याँ मुझे