आगे ही बिन कहे तू कहे है नहीं नहीं
तुझ से अभी तो हम ने वे बातें कही नहीं
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तर-दामनी पे शैख़ हमारी न जाइयो
टुक ख़बर ले कि हर घड़ी हम को
क़त्ल-ए-आशिक़ किसी माशूक़ से कुछ दूर न था
'दर्द' कुछ मालूम है ये लोग सब
हर-चंद तुझे सब्र नहीं दर्द व-लेकिन
दिल भी ऐ 'दर्द' क़तरा-ए-ख़ूँ था
उन लबों ने न की मसीहाई
हो गया मेहमाँ-सरा-ए-कसरत-ए-मौहूम आह
आँखें भी हाए नज़अ में अपनी बदल गईं
समझना फ़हम गर कुछ है तबीई से इलाही को
ने गुल को है सबात न हम को है ए'तिबार
रब्त है नाज़-ए-बुताँ को तो मिरी जान के साथ