पता Poetry (page 6)

कौन है किस ने पुकारा है सदा कैसे हुई

सरमद सहबाई

नूर की शाख़ से टूटा हुआ पत्ता हूँ मैं

सरदार सलीम

दिन-ब-दिन सफ़्हा-ए-हस्ती से मिटा जाता हूँ

सरदार सलीम

परिंदा कमरे में रह गया

सारा शगुफ़्ता

वो दुख जो सोए हुए हैं उन्हें जगा दूँगा

साक़ी फ़ारुक़ी

बाद-ए-निस्याँ है मिरा नाम बता दो कोई

साक़ी फ़ारुक़ी

तुम्हारी याद को हम ने पलक पर यूँ सजा रक्खा

संजीव आर्या

हर एक साँस के पीछे कोई बला ही न हो

सालिम सलीम

हंगामा-ए-सुकूत बपा कर चुके हैं हम

सालिम सलीम

ज़र्द पत्ते में कोई नुक़्ता-ए-सब्ज़

सलीम शहज़ाद

उसे पता है कि रुकती नहीं है छाँव कभी

सलीम शहज़ाद

यक़ीन है कि वो मेरी ज़बाँ समझता है

सलीम शहज़ाद

बाल-ओ-पर हों तो फ़ज़ा काफ़ी है

सलीम शहज़ाद

तुझे दुश्मनों की ख़बर न थी मुझे दोस्तों का पता नहीं

सलीम कौसर

मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है

सलीम कौसर

कहीं तुम अपनी क़िस्मत का लिखा तब्दील कर लेते

सलीम कौसर

फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ में शाख़ से पत्ता निकाल दे

सलीम फ़िगार

मंज़िल का पता है न किसी राहगुज़र का

सलीम अहमद

कोई नहीं जो पता दे दिलों की हालत का

सलीम अहमद

मैं सर छुपाऊँ कहाँ साया-ए-नज़र के बग़ैर

सलीम अहमद

किसी दश्त का लब-ए-ख़ुश्क हूँ जो न पाए मुज़्दा-ए-आब तक

सलीम अहमद

दिल ही मेरा फ़क़त है मतलब का

सख़ी लख़नवी

फिरती थी ले के शोरिश-ए-दिल कू-ब-कू हमें

सज्जाद बाक़र रिज़वी

उस सादा-दिल से कुछ मुझे 'बाक़र' गिला न था

सज्जाद बाक़र रिज़वी

हमें चार सम्त की दौड़ में वही गर्द-ए-बाद-ए-सदा मिला

सज्जाद बाक़र रिज़वी

चहचहाती चंद चिड़ियों का बसर था पेड़ पर

सज्जाद बलूच

क्यूँ उजड़ जाती है दिल की महफ़िल

सैफ़ुद्दीन सैफ़

हम क़त्ल कब हुए ये पता ही नहीं चला

सहर महमूद

हर घड़ी मुझ को बे-क़रार न कर

सहर महमूद

ढूँढने को तुझे ओ मेरे न मिलने वाले

साग़र निज़ामी

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