ढूँढने को तुझे ओ मेरे न मिलने वाले
वो चला है जिसे अपना भी पता याद नहीं
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आँख तुम्हारी मस्त भी है और मस्ती का पैमाना भी
हुस्न ने दस्त-ए-करम खींच लिया है क्या ख़ूब
दश्त में क़ैस नहीं कोह पे फ़रहाद नहीं
फिर रह-ए-इश्क़ वही ज़ाद-ए-सफ़र माँगे है
नग़्मे हवा ने छेड़े फ़ितरत की बाँसुरी में
यूँ न रह रह कर हमें तरसाइए
पनघट की रानी
ख़िरामाँ ख़िरामाँ मोअत्तर मोअत्तर
नदीम-ए-दर्द-ए-मोहब्बत बड़ा सहारा है
आओ इक सज्दा करूँ आलम-ए-बद-सम्ती में
सैलाब-ए-तबस्सुम से दरमान-ए-जराहत कर