ख़िरामाँ ख़िरामाँ मोअत्तर मोअत्तर
नसीम आ रही है कि वो आ रहे हैं
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रातों को तसव्वुर है उन का और चुपके चुपके रोना है
फिर रह-ए-इश्क़ वही ज़ाद-ए-सफ़र माँगे है
दिल की बर्बादियों का रोना क्या
आँख तुम्हारी मस्त भी है और मस्ती का पैमाना भी
दश्त में क़ैस नहीं कोह पे फ़रहाद नहीं
यही सहबा यही साग़र यही पैमाना है
काफ़िर गेसू वालों की रात बसर यूँ होती है
पनघट की रानी
सावन की रुत आ पहुँची काले बादल छाएँगे
दोस्तो दुर्द पिलाओ कि कड़ी रात कटे
सज्दे मिरी जबीं के नहीं इस क़दर हक़ीर
हम आँखों से भी अर्ज़-ए-तमन्ना नहीं करते