दिल की बर्बादियों का रोना क्या
ऐसे कितने ही वाक़िआ'त हुए
Faiz Ahmad Faiz
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ख़िरामाँ ख़िरामाँ मोअत्तर मोअत्तर
होली
आँख तुम्हारी मस्त भी है और मस्ती का पैमाना भी
तख़्लीक़ अँधेरों से किए हम ने उजाले
सैलाब-ए-तबस्सुम से दरमान-ए-जराहत कर
नज़र करम की फ़रावानियों पे पड़ती है
यही सहबा यही साग़र यही पैमाना है
न कश्ती है न फ़िक्र-ए-ना-ख़ुदा है
दोस्तो दुर्द पिलाओ कि कड़ी रात कटे
सावन की रुत आ पहुँची काले बादल छाएँगे
सज्दे मिरी जबीं के नहीं इस क़दर हक़ीर
काफ़िर गेसू वालों की रात बसर यूँ होती है