सैलाब-ए-तबस्सुम से दरमान-ए-जराहत कर
टुकड़े दिल-ए-बिस्मिल के आलूदा-ए-ख़ूँ कब तक
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Habib Jalib
Rahat Indori
Anwar Masood
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Gulzar
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
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वो सवाल-ए-लुत्फ़ पर पत्थर न बरसाएँ तो क्यूँ
सज्दे मिरी जबीं के नहीं इस क़दर हक़ीर
सदियों की शब-ए-ग़म को सहर हम ने बनाया
सावन की रुत आ पहुँची काले बादल छाएँगे
ढूँढने को तुझे ओ मेरे न मिलने वाले
गुल अपने ग़ुंचे अपने गुल्सिताँ अपना बहार अपनी
पनघट की रानी
जो रहीन-ए-तग़य्युरात नहीं
फिर रह-ए-इश्क़ वही ज़ाद-ए-सफ़र माँगे है
आओ इक सज्दा करूँ आलम-ए-बद-सम्ती में
हम आँखों से भी अर्ज़-ए-तमन्ना नहीं करते