पता Poetry (page 9)

हो आँख अगर ज़िंदा गुज़रती है न क्या क्या

हकीम मंज़ूर

वो नाज़नीं ये नज़ाकत में कुछ यगाना हुआ

हैदर अली आतिश

मिरे दिल को शौक़-ए-फ़ुग़ाँ नहीं मिरे लब तक आती दुआ नहीं

हैदर अली आतिश

ग़म नहीं गो ऐ फ़लक रुत्बा है मुझ को ख़ार का

हैदर अली आतिश

फ़ुर्सत की तमन्ना में

हफ़ीज़ जालंधरी

कुछ सोच के परवाना महफ़िल में जला होगा

हफ़ीज़ बनारसी

गुमराह कह के पहले जो मुझ से ख़फ़ा हुए

हफ़ीज़ बनारसी

फिर दिल से आ रही है सदा उस गली में चल

हबीब जालिब

ऐ ग़म-ए-हिज्र रात कितनी है

ग्यान चन्द मंसूर

सिद्धार्थ की एक रात

गुलज़ार

ग़ालिब

गुलज़ार

ज़िक्र होता है जहाँ भी मिरे अफ़्साने का

गुलज़ार

जब भी आँखों में अश्क भर आए

गुलज़ार

गुलों को सुनना ज़रा तुम सदाएँ भेजी हैं

गुलज़ार

शब डूब गई

गुलनाज़ कौसर

तुम यूँ ही नाराज़ हुए हो वर्ना मय-ख़ाने का पता

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

हिज्र के तपते मौसम में भी दिल उन से वाबस्ता है

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

शौक़ बरहना-पा चलता था और रस्ते पथरीले थे

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

हिज्र के तपते मौसम में भी दिल उन से वाबस्ता है

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

बारूद के बदले हाथों में आ जाए किताब तो अच्छा हो

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

न रहा शिकवा-ए-जफ़ा न रहा

ग़ुलाम मौला क़लक़

ख़ुशी में भी नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ हूँ

ग़ुलाम मौला क़लक़

इक हुजूम-ए-ग़म-ओ-कुलफ़त है ख़ुदा ख़ैर करे

ग़ुलाम भीक नैरंग

सजा के ज़ेहन में कितने ही ख़्वाब सोए थे

ग़ज़नफ़र

ख़ून-ए-दिल मुझ से तिरा रंग-ए-हिना माँगे है

ग़यास अंजुम

तुम्हें ख़बर भी है ये तुम ने किस से क्या माँगा

ग़नी एजाज़

हुई ताख़ीर तो कुछ बाइस-ए-ताख़ीर भी था

ग़ालिब

नौमीद करे दिल को न मंज़िल का पता दे

फ़ुज़ैल जाफ़री

आठों पहर लहू में नहाया करे कोई

फ़ुज़ैल जाफ़री

ज़ालिम है वो ऐसा कि जफ़ा भी नहीं करता

फ़िरदौस गयावी

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