ज़माना भी मुझ से ना-मुवाफ़िक़ मैं आप भी दुश्मन-ए-सलामत
तअज्जुब इस का है बोझ क्यूँकर मैं ज़िंदगी का उठा रहा हूँ
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आँख में जल्वा तिरा दिल में तिरी याद रहे
यहाँ हर आने वाला बन के इबरत का निशाँ आया
किसी तरह दिन तो कट रहे हैं फ़रेब-ए-उम्मीद खा रहा हूँ
नहीं कि इश्क़ नहीं है गुल ओ समन से मुझे
ज़ब्त की कोशिश है जान-ए-ना-तवाँ मुश्किल में है
बहार आई है आराइश-ए-चमन के लिए
जो तुझ से शोर-ए-तबस्सुम ज़रा कमी होगी
निशान-ए-मंज़िल-ए-जानाँ मिले मिले न मिले
दर्द आ के बढ़ा दो दिल का तुम ये काम तुम्हें क्या मुश्किल है
यही है इश्क़ की मुश्किल तो मुश्किल आसाँ है
रुख़-ए-रौशन से यूँ उट्ठी नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता