बज़्म Poetry (page 6)

ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

पहले था मोहब्बत का गुमाँ सो वो यक़ीं है

सय्यद हामिद

लहू को दिल के जो सर्फ़-ए-बहार कर न सके

सय्यद हामिद

मिट्टी तिरे महकने से मुझ को गुमान है

सय्यद अनवार अहमद

वो बज़्म-ए-ग़ैर में बा-सद-वक़ार बैठे हैं

सय्यद अाग़ा अली महर

यही था वक़्फ़ तिरी महफ़िल-ए-तरब के लिए

सय्यद आबिद अली आबिद

ग़म-ए-दौराँ ग़म-ए-जानाँ का निशाँ है कि जो था

सय्यद आबिद अली आबिद

दिन ढला शाम हुई फूल कहीं लहराए

सय्यद आबिद अली आबिद

वो लौट आई है ऑफ़िस से हिज्र ख़त्म हुआ

स्वप्निल तिवारी

शिद्दत-ए-कर्ब से कराह उठा

सालेह नदीम

गंगा जी

सुरूर जहानाबादी

बुलबुल ओ परवाना

सुरूर जहानाबादी

चमन वालों को रक़्साँ-ओ-ग़ज़ल-ख़्वाँ ले के उट्ठी है

सुरूर बाराबंकवी

हमारे हाल की जा कर उन्हें ख़बर तो करें

सूरज नारायण

हुआ नहीं है अभी मुन्हरिफ़ ज़बान से वो

सुल्तान सुकून

मौसम-ए-गुल कुंज-ए-गुलशन निकहत-ए-गेसू न हो

सुलतान रशक

कचोके दिल को लगाता हुआ सा कुछ तो है

सुलेमान ख़ुमार

इस एक सोच में गुम हैं ख़याल जितने हैं

सुलेमान ख़ुमार

तुम्हारी क़ैद-ए-वफ़ा से जो छूट जाऊँगा

सुलैमान अरीब

प्यार का दर्द का मज़हब नहीं होता कोई

सुलैमान अरीब

वो मिज़ाज दिल के बदल गए कि वो कारोबार नहीं रहा

सुलैमान अहमद मानी

वफ़ा का इम्तिहाँ है जान-आे-तन की आज़माइश है

सुलैमान आसिफ़

उठिए तो कहाँ जाइए जो कुछ है यहीं है

सुहा मुजद्ददी

तिरी याद जो मेरे दिल में है बस उसी की जल्वागरी रही

सूफ़िया अनजुम ताज

सौ बार चमन महका सौ बार बहार आई

सूफ़ी तबस्सुम

निगाहें दर पे लगी हैं उदास बैठे हैं

सूफ़ी तबस्सुम

नज़र में ढल के उभरते हैं दिल के अफ़्साने

सूफ़ी तबस्सुम

नज़र में ढल के उभरते हैं दिल के अफ़्साने

सूफ़ी तबस्सुम

मोहब्बत किस क़दर सेहर-आफ़रीं मालूम होती है

सूफ़ी तबस्सुम

ग़म-नसीबों को किसी ने तो पुकारा होगा

सूफ़ी तबस्सुम

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