बज़्म Poetry (page 22)

दीदा-ए-सर्फ़-ए-इंतिज़ार है शम्अ

ग़ुलाम मौला क़लक़

अजब था ज़ोम कि बज़्म-ए-अज़ा सजाएँगे

ग़ुफ़रान अमजद

जल्वा-ए-हुस्न अगर ज़ीनत-ए-काशाना बने

ग़ुबार भट्टी

अजब इंक़लाब का दौर है कि हर एक सम्त फ़िशार है

ग़ुबार भट्टी

मुहीत-ए-हुस्न जो अब दम-ब-दम चढ़ाव पे है

ग़ज़नफ़र अली ग़ज़नफ़र

हम ने जब चाहा कोई आग बुझाने आए

ग़यास अंजुम

कोई हमराह नहीं राह की मुश्किल के सिवा

ग़नी एजाज़

अंदाज़-ए-फ़िक्र अहल-ए-जहाँ का जुदा रहा

ग़नी एजाज़

न पूछ हिज्र में जो हाल अब हमारा है

ग़मगीन देहलवी

मुझ तक कब उन की बज़्म में आता था दौर-ए-जाम

ग़ालिब

मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए

ग़ालिब

मैं ने कहा कि बज़्म-ए-नाज़ चाहिए ग़ैर से तिही

ग़ालिब

मैं और बज़्म-ए-मय से यूँ तिश्ना-काम आऊँ

ग़ालिब

मय वो क्यूँ बहुत पीते बज़्म-ए-ग़ैर में या रब

ग़ालिब

बू-ए-गुल नाला-ए-दिल दूद-ए-चराग़-ए-महफ़िल

ग़ालिब

ज़ुल्मत-कदे में मेरे शब-ए-ग़म का जोश है

ग़ालिब

ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना

ग़ालिब

वो मिरी चीन-ए-जबीं से ग़म-ए-पिन्हाँ समझा

ग़ालिब

वाँ पहुँच कर जो ग़श आता पए-हम है हम को

ग़ालिब

उस बज़्म में मुझे नहीं बनती हया किए

ग़ालिब

तुम अपने शिकवे की बातें न खोद खोद के पूछो

ग़ालिब

शिकवे के नाम से बे-मेहर ख़फ़ा होता है

ग़ालिब

शौक़ हर रंग रक़ीब-ए-सर-ओ-सामाँ निकला

ग़ालिब

शब कि बर्क़-ए-सोज़-ए-दिल से ज़हरा-ए-अब्र आब था

ग़ालिब

सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं

ग़ालिब

रुख़-ए-निगार से है सोज़-ए-जावेदानी-ए-शमा

ग़ालिब

रहम कर ज़ालिम कि क्या बूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है

ग़ालिब

नश्शा-हा शादाब-ए-रंग ओ साज़-हा मस्त-ए-तरब

ग़ालिब

नक़्श-ए-नाज़-ए-बुत-ए-तन्नाज़ ब-आग़ोश-ए-रक़ीब

ग़ालिब

नहीं कि मुझ को क़यामत का ए'तिक़ाद नहीं

ग़ालिब

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