दुनिया का तमाम कारख़ाना है अबस
इस किश्त-ए-अबस का दाना दाना है अबस
इक हर्फ़-ए-ग़लत है बल्कि ये भी है ग़लत
हर ज़िक्र अबस है हर फ़साना है अबस
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तुझे कल ही से नहीं बे-कली न कुछ आज ही से रहा क़लक़
ज़ोलीदा मुअम्मा है जहान-ए-पुर-पेच
ऐ अब्र कहाँ तक तिरे रस्ते देखें
ऐ सितम-आज़मा जफ़ा कब तक
है अगर कुछ वफ़ा तो क्या कहने
फ़ानी के है नज़दीक बक़ा को भी फ़ना
मस्जिद में न जा वाँ नहीं होने का निबाह
अफ़्सोस तिरी वज़्अ पे आता है 'क़लक़'
जी है ये बिन लगे नहीं रहता
वो संग-दिल अंगुश्त-ब-दंदाँ नज़र आवे
हर तरह से ज़ाएअ' है यहाँ हर औक़ात
है मेहर-ए-करम गुनाह-गारी मेरी