जी है ये बिन लगे नहीं रहता
कुछ तो हो शग़्ल-ए-आशिक़ी ही सही
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ख़ुर्शीद पे जिस वक़्त ज़वाल आता है
शहर उन के वास्ते है जो रहते हैं तुझ से दूर
न रहा शिकवा-ए-जफ़ा न रहा
इस अहद में एहतिसाब-ए-ईमानी क्या
दरवाज़े पे तेरे ही मरूँगा या-रब
मस्जिद में न जा वाँ नहीं होने का निबाह
दुनिया का तमाम कारख़ाना है अबस
हर अदावत की इब्तिदा है इश्क़
क्या ज़िक्र-ए-वफ़ा जफ़ा किसी से न बनी
ता-माह-ए-सियाम हुए बाब-ए-उम्मीद
क्या लेने सू-ए-जाह-ओ-हशम जाएँगे
हर ज़ख़्म-ए-जिगर खाया है दिल पर तन कर