दरवाज़े पे तेरे ही मरूँगा यारब
क्या बीम-ए-जहन्नम न डरूँगा यारब
गुस्ताख़ी-ए-उज़्र बा'द-ए-इस्याँ मायूब
तौबा है कि तौबा न करूँगा यारब
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वही वा'दा है वही आरज़ू वही अपनी उम्र-ए-तमाम है
हर फ़स्ल में होते हैं जवाँ सारे शजर
न रहा शिकवा-ए-जफ़ा न रहा
जबीन-ए-पारसा को देख कर ईमाँ लरज़ता है
दोस्ती उस की दुश्मनी ही सही
रिश्ता-ए-रस्म-ए-मोहब्बत मत तोड़
उन से कहा कि सिद्क़-ए-मोहब्बत मगर दरोग़
नक़्श-बर-आब नाम है सैल-ए-फ़ना मक़ाम
जो दिलबर की मोहब्बत दिल से बदले
मस्जिद को दिया छोड़ रिया की ख़ातिर
दरवाज़े पे तेरे ही मरूँगा या-रब
किस क़दर दिलरुबा-नुमा है दिल