मस्जिद को दिया छोड़ रिया की ख़ातिर
का'बे नहीं जाता तो हया की ख़ातिर
मय-ख़ाने में जाता हूँ तो रहमत के लिए
मय पीता हूँ एहसान-ए-ख़ुदा की ख़ातिर
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हो मोहब्बत की ख़बर कुछ तो ख़बर फिर क्यूँ हो
ग़ैरों को शब-ए-वस्ल बुलाने से ग़रज़
गाहे तो करम हम पे भी फ़रमाएँ आप
उड़ाऊँ न क्यूँ तार-तार-ए-गरेबाँ
दयार-ए-यार का शायद सुराग़ लग जाता
अफ़्सोस तिरी वज़्अ पे आता है 'क़लक़'
आलूदा ख़यालात में तेरे हूँ मुदाम
दुनिया का तमाम कारख़ाना है अबस
शह कहते थे अफ़्सोस न कहना माने
ज़ोलीदा मुअम्मा है जहान-ए-पुर-पेच
हो जुदा ऐ चारा-गर है मुझ को आज़ार-ए-फ़िराक़
नाला करता हूँ लोग सुनते हैं