नाला करता हूँ लोग सुनते हैं
आप से मेरा कुछ कलाम नहीं
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उड़ाऊँ न क्यूँ तार-तार-ए-गरेबाँ
ख़ुदा से डरते तो ख़ौफ़-ए-ख़ुदा न करते हम
रिश्ता-ए-रस्म-ए-मोहब्बत मत तोड़
जाहिल की है मीरास 'क़लक़' तख़्त-ओ-ताज
न हो आरज़ू कुछ यही आरज़ू है
न लगती आँख तो सोने में क्या बुराई थी
ख़ुशी में भी नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ हूँ
क्या आ के जहाँ में कर गए हम
जबीन-ए-पारसा को देख कर ईमाँ लरज़ता है
मरमर के पए रंज-ओ-बला जीते हैं
तेरे दर पर मक़ाम रखते हैं
दरवाज़े पे तेरे ही मरूँगा या-रब