जाहिल की है मीरास 'क़लक़' तख़्त-ओ-ताज
कामिल है सदा बे-हुनरों का मुहताज
इबलीस का इस्याँ नहीं जुज़ किब्र-ए-कमाल
बे-क़दरी-ए-फ़न का है अज़ल ही से रिवाज
Allama Iqbal
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लो जाइए बस ख़ुदा हमारा हाफ़िज़
ऐ सितम-आज़मा जफ़ा कब तक
किस क़दर दिलरुबा-नुमा है दिल
गर्दन को झुका देता है अदना एहसान
नाला करता हूँ लोग सुनते हैं
कहता हूँ ख़ुदा-लगती अक़ीदे के ख़िलाफ़
मूसा के सर पे पाँव है अहल-ए-निगाह का
है दोस्ती-ए-आल-ए-अबा रोने से
दुनिया का अजब रंग से देखा अंगेज़
शह कहते थे अफ़्सोस न कहना माने
उड़ाऊँ न क्यूँ तार-तार-ए-गरेबाँ
सद-हैफ़ कि मय-नोश हुए हम कैसे