जो जा के न आए फिर जवानी है ये शय
पर हैफ़ नसीब-ए-राएगानी है ये शय
क्या जान की फ़िक्र लेनी देनी है ये चीज़
क्या दिल का ख़याल आनी जानी है ये शय
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है अगर कुछ वफ़ा तो क्या कहने
दीं ही बेहोश है न दुनिया बेहोश
ज़ुलेख़ा बे-ख़िरद आवारा लैला बद-मज़ा शीरीं
बुत-ख़ाने की उल्फ़त है न काबे की मोहब्बत
ज़ोलीदा मुअम्मा है जहान-ए-पुर-पेच
था आदम-ए-ख़ाकी ग़ज़ब बे-ज़िन्हार
उड़ाऊँ न क्यूँ तार-तार-ए-गरेबाँ
हर अदावत की इब्तिदा है इश्क़
अफ़्साना-ए-यार बहर-ए-वसलत है लज़ीज़
उस ख़ित्ते की जा आलम-ए-बाला में नहीं
दिल से मुझे आने की है आन की आहट
किस वास्ते दी थीं हमें या-रब आँखें