बुत-ख़ाने की उल्फ़त है न काबे की मोहब्बत
जूयाई-ए-नैरंग है जब तक कि नज़र है
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ख़त ज़मीं पर न ऐ फ़ुसूँ-गर काट
न हो आरज़ू कुछ यही आरज़ू है
गाहे तो करम हम पे भी फ़रमाएँ आप
जाँ जाए पर उम्मीद न जाएगी कभी
वही वा'दा है वही आरज़ू वही अपनी उम्र-ए-तमाम है
ज़ुलेख़ा बे-ख़िरद आवारा लैला बद-मज़ा शीरीं
कोई कैसा ही साबित हो तबीअ'त आ ही जाती है
मैं राज़दाँ हूँ ये कि जहाँ था वहाँ न था
थक थक गए हैं आशिक़ दरमांदा-ए-फ़ुग़ाँ हो
तू है हरजाई तो अपना भी यही तौर सही
किस क़दर दिलरुबा-नुमा है दिल
जाहिल की है मीरास 'क़लक़' तख़्त-ओ-ताज