तू है हरजाई तो अपना भी यही तौर सही
तू नहीं और सही और नहीं और सही
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मोहब्बत वो है जिस में कुछ किसी से हो नहीं सकता
किस वास्ते दी थीं हमें या-रब आँखें
हो जुदा ऐ चारा-गर है मुझ को आज़ार-ए-फ़िराक़
तू देख तो उधर कि जो देखा न जाए फिर
क्या कहें तुझ से हम वफ़ा क्या है
दिल के हर जुज़्व में जुदाई है
कुफ़्र और इस्लाम में देखा तो नाज़ुक फ़र्क़ था
जबीन-ए-पारसा को देख कर ईमाँ लरज़ता है
इस वक़्त ज़माने में बहम ऐसे हैं
हर ज़ख़्म-ए-जिगर खाया है दिल पर तन कर
ज़ोलीदा मुअम्मा है जहान-ए-पुर-पेच
क्या लेने सू-ए-जाह-ओ-हशम जाएँगे