मैं राज़दाँ हूँ ये कि जहाँ था वहाँ न था
तू बद-गुमाँ है वो कि जहाँ है वहाँ नहीं
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हर तरह से ज़ाएअ' है यहाँ हर औक़ात
ख़ुद को कभी न देखा आईने ही को देखा
अश्क के गिरते ही आँखों में अंधेरा छा गया
ज़ुहहाद का ग़फ़लत से है औराद-ओ-सुजूद
वो संग-दिल अंगुश्त-ब-दंदाँ नज़र आवे
क्या जानिए उल्फ़त का है किस से आग़ाज़
दिल के हर जुज़्व में जुदाई है
है बस कि जवानी में बुढ़ापे का ग़म
अफ़्सोस तिरी वज़्अ पे आता है 'क़लक़'
जाँ जाए पर उम्मीद न जाएगी कभी
अंदाज़ा आदमी का कहाँ गर न हो शराब