गर्दन को झुका देता है अदना एहसान
किस तरह से दिखलाएँगे मुँह ना एहसान
रज़्ज़ाक़ है तू और ग़फ़ूर-उल-असियाँ
मय देता है हम जैसों को तेरा एहसान
Jaun Eliya
Anwar Masood
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
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दुनिया है अजब बू-क़लमूँ ज़िद-आमोज़
झगड़ा था जो दिल पे उस को छोड़ा
न पहुँचे हाथ जिस का ज़ोफ़ से ता-ज़ीस्त दामन तक
ऐ ख़ार ख़ार-ए-हसरत क्या क्या फ़िगार हैं हम
वाइ'ज़ ने मय-कदे को जो देखा तो जल गया
जबीन-ए-पारसा को देख कर ईमाँ लरज़ता है
ख़ुद को कभी न देखा आईने ही को देखा
जब बाप मुआ तो फिर है बेटा क्या शय
नक़्श-बर-आब नाम है सैल-ए-फ़ना मक़ाम
है बस कि जवानी में बुढ़ापे का ग़म
हो जुदा ऐ चारा-गर है मुझ को आज़ार-ए-फ़िराक़
अफ़्सोस तिरी वज़्अ पे आता है 'क़लक़'