दुनिया है अजब बू-क़लमूँ ज़िद-आमोज़
हर शक्ल-ए-मुआफ़िक़ है मुख़ालिफ़-अंदोज़
याँ दस्त-ओ-गरेबाँ हैं दर्द-ओ-दरमाँ
हर सोज़ में है साज़ तो हर साज़ में सोज़
Mir Taqi Mir
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क्या ख़ाना-ख़राबों का लगे तेरे ठिकाना
वो वक़्त-ए-शबाब वो ज़माना न रहा
मेहराब-ओ-मुसल्ला और ज़ाहिद भी वही
दिल से मुझे आने की है आन की आहट
ख़त ज़मीं पर न ऐ फ़ुसूँ-गर काट
लाज़िम है कि फ़िक्र-ए-रुख़-ए-दिलबर छोड़ूँ
इस बज़्म से मैदान में जाना होगा
शह कहते थे अफ़्सोस न कहना माने
बे-गाना-अदाई है सितम जौर-ओ-सितम में
दामन से गुल-ए-ताज़ा महकते निकले
मस्जिद में न जा वाँ नहीं होने का निबाह
उन से कहा कि सिद्क़-ए-मोहब्बत मगर दरोग़