मेहराब-ओ-मुसल्ला और ज़ाहिद भी वही
सज्दा मस्जूद और साजिद भी वही
तकलीफ़-ए-क़यामत है ये किस की ख़ातिर
हाकिम भी मुद्दई' भी शाहिद भी वही
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न ये है न वो है न मैं हूँ न तू है
जाँ जाए पर उम्मीद न जाएगी कभी
क्या कहें तुझ से हम वफ़ा क्या है
न लगती आँख तो सोने में क्या बुराई थी
इस अहद में एहतिसाब-ए-ईमानी क्या
न हो आरज़ू कुछ यही आरज़ू है
अफ़्साना-ए-यार बहर-ए-वसलत है लज़ीज़
फ़िक्र-ए-सितम में आप भी पाबंद हो गए
किस लिए दावा-ए-ज़ुलेख़ाई
कुफ़्र और इस्लाम में देखा तो नाज़ुक फ़र्क़ था
क्या जानिए उल्फ़त का है किस से आग़ाज़
आसमाँ अहल-ए-ज़मीं से क्या कुदूरत-नाक था