इस बज़्म से मैदान में जाना होगा
ऐवाँ से बयाबान में जाना होगा
होश्यार हो तय्यार हो ज़िन्हार न सो
क्या जानिए किस आन में जाना होगा
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उस ख़ित्ते की जा आलम-ए-बाला में नहीं
ज़ोलीदा मुअम्मा है जहान-ए-पुर-पेच
मैं राज़दाँ हूँ ये कि जहाँ था वहाँ न था
वाइ'ज़ ये मय-कदा है न मस्जिद कि इस जगह
बोसा देने की चीज़ है आख़िर
वो ज़िक्र था तुम्हारा जो इंतिहा से गुज़रा
किस वास्ते दी थीं हमें या-रब आँखें
नाला करता हूँ लोग सुनते हैं
जो कहता है वो करता है बर-अक्स उस के काम
मोहब्बत वो है जिस में कुछ किसी से हो नहीं सकता
ख़त ज़मीं पर न ऐ फ़ुसूँ-गर काट
या-रब तुझे फ़िक्र-पा-ए-बंदी क्या है