यारब तुझे फ़िक्र-ए-पा-ए-बंदी किया है
ना-चार की ओ नियाज़-मंदी क्या है
है ख़ालक़ी और आशिक़ी है और
पूछ हम ही से दर्द-ओ-दर्द-मंदी क्या है
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कहता हूँ ख़ुदा-लगती अक़ीदे के ख़िलाफ़
ख़ुर्शीद पे जिस वक़्त ज़वाल आता है
बानो ने कहा क़तरा नहीं शीर का है
ऐ अब्र कहाँ तक तिरे रस्ते देखें
रहम कर मस्तों पे कब तक ताक़ पर रक्खेगा तू
न पहुँचे हाथ जिस का ज़ोफ़ से ता-ज़ीस्त दामन तक
अफ़्साना-ए-यार बहर-ए-वसलत है लज़ीज़
ऐ पर्दा-नशीं सहल हुआ ये इश्काल
इस अहद में एहतिसाब-ए-ईमानी क्या
नाला करता हूँ लोग सुनते हैं
दामन से गुल-ए-ताज़ा महकते निकले
दुनिया में 'क़लक़' क्या है सरासर है ख़ाक