ऐ पर्दा-नशीं सहल हुआ ये इश्काल
दर-पर्दा नहीं वस्ल से कम तेरा ख़याल
आईना-ए-दीदा के उधर फिरते हो
उस तर्फ़ नज़र के है तिलिस्मात-ए-विसाल
Wasi Shah
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बोसा देने की चीज़ है आख़िर
हर तरह से ज़ाएअ' है यहाँ हर औक़ात
दयार-ए-यार का शायद सुराग़ लग जाता
शहर उन के वास्ते है जो रहते हैं तुझ से दूर
रिश्ता-ए-रस्म-ए-मोहब्बत मत तोड़
जो दिलबर की मोहब्बत दिल से बदले
राज़-ए-दिल दोस्त को सुना बैठे
मेहराब-ओ-मुसल्ला और ज़ाहिद भी वही
अश्क के गिरते ही आँखों में अंधेरा छा गया
चल दिए हम ऐ ग़म-ए-आलम विदाअ'
ता-माह-ए-सियाम हुए बाब-ए-उम्मीद
ख़ुशी में भी नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ हूँ