शहर उन के वास्ते है जो रहते हैं तुझ से दूर
घर उन का फिर कहाँ जो तिरे दिल में घर करें
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लाज़िम है कि फ़िक्र-ए-रुख़-ए-दिलबर छोड़ूँ
इस वक़्त ज़माने में बहम ऐसे हैं
मस्जिद को दिया छोड़ रिया की ख़ातिर
दुनिया का अजब रंग से देखा अंगेज़
दीदा-ए-सर्फ़-ए-इंतिज़ार है शम्अ
हम कौन हैं एहतिमाम करने वाले
फ़ानी के है नज़दीक बक़ा को भी फ़ना
दिल देर-गुज़ारी से है आवंद-ए-नमक
नक़्श-बर-आब नाम है सैल-ए-फ़ना मक़ाम
इस बज़्म से मैदान में जाना होगा
ख़ुद देख ख़ुदी को ओ ख़ुद-आरा
वो संग-दिल अंगुश्त-ब-दंदाँ नज़र आवे