हम कूँ हैं एहतिमाम करने वाले
हर काम में सुब्ह-ओ-शाम करने वाले
क्या वा'दा-ओ-पैग़ाम हमारे तेरे
वो आप हैं अपना काम करने वाले
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Habib Jalib
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Rahat Indori
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Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
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मातम-ए-दीद है दीदार का ख़्वाहाँ होना
जो कहता है वो करता है बर-अक्स उस के काम
ज़िंदगी मर्ग की मोहलत ही सही
हर रोज़ ख़ुशी है शब-ए-ग़म से पामाल
झगड़ा था जो दिल पे उस को छोड़ा
कोई कैसा ही साबित हो तबीअ'त आ ही जाती है
ख़ुर्शीद पे जिस वक़्त ज़वाल आता है
ये वहम-ए-दुई दिल से जुदा करना था
ज़ोलीदा मुअम्मा है जहान-ए-पुर-पेच
बे-गाना-अदाई है सितम जौर-ओ-सितम में
नाहक़ था 'क़लक़' मुझे ग़ुरूर-ए-इस्लाम
शहर उन के वास्ते है जो रहते हैं तुझ से दूर