हर रोज़ ख़ुशी है शब-ए-ग़म से पामाल
ख़ाली का है चाँद बा'द शहर-ए-शव्वाल
किस तरह 'क़लक़' उम्र न रोते गुज़रे
होता है मोहर्रम से शुरूअ' हर साल
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
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Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Gulzar
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दिल से मुझे आने की है आन की आहट
वो वक़्त-ए-शबाब वो ज़माना न रहा
अम्न और तेरे अहद में ज़ालिम
था आदम-ए-ख़ाकी ग़ज़ब बे-ज़िन्हार
न ये है न वो है न मैं हूँ न तू है
बे-गाना-अदाई है सितम जौर-ओ-सितम में
हर फ़स्ल में होते हैं जवाँ सारे शजर
दिल के हर जुज़्व में जुदाई है
दुनिया का अजब रंग से देखा अंगेज़
चल दिए हम ऐ ग़म-ए-आलम विदाअ'
क्या लेने सू-ए-जाह-ओ-हशम जाएँगे
ऐ चश्म-ए-ग़मीं तेरे एवज़ रोए कौन