तेरा दीवाना तो वहशत की भी हद से निकला
कि बयाबाँ को भी चाहे है बयाबाँ होना
Anwar Masood
Parveen Shakir
Gulzar
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Javed Akhtar
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(744) Peoples Rate This
जो जा के न आए फिर जवानी है ये शय
हम कौन हैं एहतिमाम करने वाले
आलूदा ख़यालात में तेरे हूँ मुदाम
दीं ही बेहोश है न दुनिया बेहोश
चल दिए हम ऐ ग़म-ए-आलम विदाअ'
ऐ पर्दा-नशीं सहल हुआ ये इश्काल
सद-हैफ़ कि मय-नोश हुए हम कैसे
पहले रख ले तू अपने दिल पर हाथ
किस तरह कहूँ आ भी कहीं उज़्र न कर
दामन से गुल-ए-ताज़ा महकते निकले
याँ नफ़्स की शोख़ी से है मजनूँ लैला
ज़िंदगी मर्ग की मोहलत ही सही