याँ नफ़स की शोख़ी से है मजनूँ लैला
क़ाने है तो मत बहर-ए-नफ़ी कहना ला
ला शर्म ज़रा 'क़लक़' दुआ से पहले
हाथों का उठाना भी तो है सूरत-ए-ला
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अश्क के गिरते ही आँखों में अंधेरा छा गया
ख़ुद रफ़्ता हो बदमस्त हो कैसा है मिज़ाज
बुत-ख़ाने की उल्फ़त है न काबे की मोहब्बत
नासेह की शिकायत वही ज़ख़्म-ए-जाँ है
याँ नफ़्स की शोख़ी से है मजनूँ लैला
जो दिलबर की मोहब्बत दिल से बदले
है अगर कुछ वफ़ा तो क्या कहने
उठने में दर्द-ए-मुत्तसिल हूँ मैं
दिल देर-गुज़ारी से है आवंद-ए-नमक
दोस्ती उस की दुश्मनी ही सही
ख़ुर्शीद पे जिस वक़्त ज़वाल आता है
न पहुँचे हाथ जिस का ज़ोफ़ से ता-ज़ीस्त दामन तक