याँ हम को दिया क्या जो वहाँ पर हो निगाह
ताअ'त से कुछ उम्मीद न कुछ ख़ौफ़-ए-गुनाह
कर फ़ज़्ल ही अपना कि अदालत कैसी
आप ही तो मुद्दई' है आप ही है गवाह
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Habib Jalib
Jaun Eliya
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Rahat Indori
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न पहुँचे हाथ जिस का ज़ोफ़ से ता-ज़ीस्त दामन तक
इस बज़्म से मैदान में जाना होगा
क्या ख़ाना-ख़राबों का लगे तेरे ठिकाना
ख़त ज़मीं पर न ऐ फ़ुसूँ-गर काट
बोसा देने की चीज़ है आख़िर
जो कहता है वो करता है बर-अक्स उस के काम
दोस्ती उस की दुश्मनी ही सही
उन से कहा कि सिद्क़-ए-मोहब्बत मगर दरोग़
जब बाप मुआ तो फिर है बेटा क्या शय
दिल से मुझे आने की है आन की आहट
अम्न और तेरे अहद में ज़ालिम
कहता हूँ ख़ुदा-लगती अक़ीदे के ख़िलाफ़