नासेह की शिकायत वही ज़ख़्म-ए-जाँ है
साक़ी-ओ-शराब ही का नौहा-ख़्वाँ है
देखूँ तो उसे याद हैं क्या क्या बातें
अल्लाह रे तिरा हाफ़िज़ा क्या शैताँ है
Anwar Masood
Parveen Shakir
Gulzar
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(696) Peoples Rate This
जो कहता है वो करता है बर-अक्स उस के काम
था आदम-ए-ख़ाकी ग़ज़ब बे-ज़िन्हार
तिरी नवेद में हर दास्ताँ को सुनते हैं
ऐ अब्र कहाँ तक तिरे रस्ते देखें
याँ हम को दिया क्या जो वहाँ पर हो निगाह
आप के महरम असरार थे अग़्यार कि हम
शह कहते थे अफ़्सोस न कहना माने
न हो आरज़ू कुछ यही आरज़ू है
ख़ुद को कभी न देखा आईने ही को देखा
ज़ुहहाद का ग़फ़लत से है औराद-ओ-सुजूद
है अगर कुछ वफ़ा तो क्या कहने