ता-माह-ए-सियाम हुए बाब-ए-उम्मीद
और वास्ता-ए-जश्न हो ये यौम-ए-सईद
हर रोज़ से हो तेरे शब-ए-क़द्र अयाँ
हर शब से नुमायाँ हो तिरी रोज़-ए-ईद
Ahmad Faraz
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हम उस कूचे में उठने के लिए बैठे हैं मुद्दत से
ख़ुद को कभी न देखा आईने ही को देखा
पी भी ऐ माया-ए-शबाब शराब
हर संग में काबे के निहाँ इश्वा-ए-बुत है
चल दिए हम ऐ ग़म-ए-आलम विदाअ'
न हो आरज़ू कुछ यही आरज़ू है
वाइ'ज़ ये मय-कदा है न मस्जिद कि इस जगह
ऐ अब्र कहाँ तक तिरे रस्ते देखें
उठने में दर्द-ए-मुत्तसिल हूँ मैं
वो संग-दिल अंगुश्त-ब-दंदाँ नज़र आवे
दरवाज़े पे तेरे ही मरूँगा या-रब
हो मोहब्बत की ख़बर कुछ तो ख़बर फिर क्यूँ हो